Ek lekh Or ek Patr | एक लेख और एक पत्र | दिगंत भाग 2 | गद्य खंड
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1960 ईस्वी में बंगा चक्क मैं हुआ था इनका पैतृक गांव खटकड़कलॉ पंजाब भगत सिंह के माता एवं पिता का नाम विद्यावती एवं सरदार सिंह किशन पारिवारिक जीवन संपूर्ण परिवार स्वाधीनता सेनानी पिता और चाचा अजीत सिंह लाला लाजपत राय के सहयोगी अजीत सिंह को माडले जेल में देश निकाला दिया गया था बाद में विदेश में जाकर मुक्ति संग्राम का संचालन करने लगे छोटे चाचा सरदार स्वर्ण सिंह भी जेल गए और जेल की यात्राओं के कारण 1990 में उनका निधन हुआ भगत सिंह की शहादत के बाद उसके भाई कुलवीर सिंह एवं कुलतर सिंह को देवली कैंप जेल में रखा गया था जहां भी 1946 तक रहे पिता अनेक बार जेल गए।
भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा
भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा पहले 4 वर्ष की प्राइमरी शिक्षा अपने गांव बंगा में फिर लाहौर के डीएवी स्कूल में वर्ग 9 तक की पढ़ाई की बाद में नेशनल कॉलेज लाहौर में एफ ए किया, बीo एo के दौरान पढ़ाई छोड़ दी और क्रांतिकारी दल में शामिल हो गए बचपन में करतार सिंह सराभा और 1914 के गदर पार्टी के आंदोलन के प्रति तिब्र आकर्षण । सराभा की निर्भीक कुर्बानी का मन पर अस्थाई और गहरा असर 16 नवंबर 1915 को सराभा की फांसी के समय भगत सिंह की उम्र 8 वर्ष की थी वह सराभा का चित्र अपनी जेब में ही रखते थे 12 वर्ष की उम्र में जलियांवाला बाग की मिट्टी को लेकर क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत 1922 में चोरा चोरी कांड के बाद 15 वर्ष की उम्र में कांग्रेस और महात्मा गांधी से मुंह भांग।
1923 में पढ़ाई और घर छोड़कर कानपुर गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र प्रताप में सेवाएं दी 1926 में अपने नेतृत्व में पंजाब में नौजवान भारत सभा का गठन किया जिसकी शाखाएं विभिन्न शहरों में स्थापित की गई 1928 से 31 तक चंद्रशेखर प्रसाद आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ का गठन किया और क्रांतिकारी आंदोलन सघन रूप से छोड़ दिया 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु के साथ केंद्रीय असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तार हुए।
एक लेख और एक पत्र
भगत सिंह के द्वारा लिखित एक लेख और एक पत्र विद्यार्थी और राजनीति के इस बात का बड़ा भारी शोर सुना जा रहा है कि आगे पढ़ने वाला नौजवान राजनीतिक या पॉलिटिकल कामों में हिस्सा ना ले पंजाब सरकार की राय बिल्कुल ही न्यारी है। विद्यार्थियों में कॉलेज में दाखिल होने से पहले इस आशय की शर्त पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं कि पॉलिटिकल कामों में हिस्सा नहीं लेंगे आगे हमारा दुर्भाग्य की उन लोगों की ओर से चुनाव हुआ मनोहर जो अब शिक्षा मंत्री है, स्कूल कॉलेज के नाम एक सर्कुलर या परिपत्र भेजता है की कोई पढ़ने या पढ़ने वाला पॉलिटिकल में हिस्सा ना ले कुछ दिन हुए जब लाहौर में विद्यार्थी यूनियन या विद्यार्थी सभा की ओर से विद्यार्थी सप्ताह मनाया जा रहा था वहां भी सर अब्दुल कादर और प्रोफेसर ईश्वर चंद्र नंदा ने इस बात पर जोर दिया कि विद्यार्थियों को पॉलिटिकल में हिस्सा नहीं लेना चाहिए।
पंजाब को राजनीतिक जीवन में सबसे पिछड़ा हुआ कहा जाता है इसका क्या कारण है? क्या पंजाब ने बलिदान कम दिए हैं? इसका कारण स्पष्ट है कि हमारे शिक्षा विभाग के अधिकारी लोग बिल्कुल ही बुद्धि हैं आज पंजाब काउंसिल की करवाई पढ़ कर इस बात का अच्छी तरह पता चलता है कि इसका कारण यह है कि हमारी शिक्षा निकम्मी होती है और फिजूल होती है और विद्यार्थी युवा जगत अपने देश की बातों में कोई हिस्सा नहीं लेता उन्हें इस संबंध में कोई भी ज्ञान नहीं होता जब वह पढ़कर निकलते हैं तब उनमें से कुछ ही आगे बढ़ते हैं लेकिन वह ऐसी कच्ची कच्ची बातें करते हैं कि सुनकर स्वयं ही अफसोस कर बैठ जाने की सिवाय कोई चारा नहीं होता जिस नौजवान को कल देश की बागडोर हाथ में लेनी है उन्हें आज ही अक्ल के अंधे बनाने की कोशिश की जा रही है।
इससे दो परिणाम निकलेगा वह हमें खुद की समझ लेना चाहिए यह हम जानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है उन्हें अपना पूरा ध्यान उसे और लगा देना चाहिए क्या देश की स्थिति का ज्ञान और उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना उसे शिक्षा में शामिल नहीं? यदि नहीं तो हम उसे शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं जो सिर्फ कल्की की करने के लिए हासिल की जाए ऐसी शिक्षा की जरूरत ही क्या है? कुछ ज्यादा चालाक आदमी यह कहते हैं – “काका, तुम पॉलिटिक्स के अनुसार पढ़ो और सोचो जरूर, लेकिन कोई व्यावहारिक हिस्सा ना लो। तुम अधिक के योग होकर देश के लिए फायदेमंद साबित होंगे।” बात बड़ी सुंदर लगती है लेकिन हम इसे भी रद्द करते हैं क्योंकि यह भी सिर्फ ऊपरी बात है इस बात से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक दिन विद्यार्थी एक पुस्तक ‘अपील टू द यंग, प्रिंस क्रोपोटनिक’ ।
स्वतंत्रता
वे मृत तो शरीर नवयुवक के,
वे शहिद जो झूल गए फांसी के फंदे से –
वे दिल जो छलनी हो गए पूरे शीशे से,
सर्द और विषपंद जो भी लगते हैं, जीवित है और कहीं
अबाधित अभादित ओज के साथ
वे जीवित है अन्य युवाजन में, ओ राजाओं।
अभी जीवित है अन्य बंधु जन में, फिर से तुम्हें चुनौती देने को तैयार
वे पवित्र हो गए मृत्यु से –
शिक्षित और समुन्नत।
दफन ना होते आजादी पर मरने वाला
पैदा करते हैं मुक्ति बीज, फिर और बीज पैदा करने को।
जिसे ले जाती दूर हवा और फिर बोली है और जिसे
पोषित करते हैं वर्षा और जल हिम।
देवमुक्त जो हुई आत्मा उसे न कर सकते विच्छिन्न
अश्व शस्व अत्याचार के
बल्कि हो अज्ञेय रमती धरती पर, मार मार करती,
बतियाती चौकस करती।
सुखदेव के नाम पत्र
प्रिय भाई
मैं आपके पत्र को कई बार ध्यान पूर्वक पड़ा मैं अनुभव करता हूं की बदली हुई परिस्थितियों ने हम पर अलग-अलग प्रभाव डाला है जिस बातों से जेल से बाहर घृणा करते थे वह आपके लिए अब अनिवार्य हो चुकी है इसी प्रकार मैं जेल से बाहर जिन बातों का विशेष रूप से समर्थन करता था वह अब मेरे लिए विशेष महत्व नहीं रखती उदाहरण मै व्यक्तिगत प्रेम को विशेष रूप से मानने वाला था परंतु अब इस भावना का मेरे हृदय एवं मस्तिष्क में कोई विशेष स्थान नहीं रहा बाहर आप इसके कड़े विरोध थे परंतु इस संबंध में अब आपके विचारों में भारी परिवर्तन एवं क्रांति आ चुकी है। आप इसे मानव जीवन का एक अत्यंत आवश्यक एवं अनिवार्य अंग अनुभव करते हैं और सहानुभूति से आपको एक के प्रकार का आनंद भी प्राप्त हुआ है।
आपको याद होगा कि एक दिन मैं आत्महत्या के विषय में आपसे चर्चा की थी तब मैंने आपको बताया था कई परिस्थितियों में आत्महत्या उचित हो सकता है, परंतु आपने मेरे दृष्टिकोण का विरोध किया था मुझे उसे चर्चा का समय एवं स्थान भलो प्रकार याद है। हमारे यह बातें सहनशाही कुटिया में शाम के समय हुई थी आपने मजाक के रूप में हंसते हुए कहा था कि इस प्रकार की कायरता का कार्य कभी उचित नहीं माना जा सकता है आपने कहा था कि इस प्रकार का कार्य भयानक और घृणित हैं। परंतु इस विषय पर भी मैं देखता हूं कि आपका क्या राय बिल्कुल बदल चुकी है अब आप उसे कुछ अवस्थाओं में न केवल उचित वर्ण अनिवार्य एवं आवश्यक अनुभव करते हैं। मेरी इस विषय में अब यही राय है जो पहले आपकी थी अर्थात आत्महत्या एक घृणित अपराध है यह पूर्णत कायरता का कार्य है । क्रांतिकारी का तो कहना है कि क्या, कोई भी मनुष्य ऐसे कर को उचित नहीं ठहर सकता है।
आप कहते हैं कि आप यह नहीं समझ सकी की केवल कष्ट सहने से आप अपने देश की सेवा किस प्रकार कर सकते हैं। आप जैसे व्यक्ति की ओर से ऐसा प्रश्न करना बड़े आश्चर्य की बात है, क्योंकि नौजवान भारत सभा के ध्येय ‘सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना’ को हमने सोच समझ कर कितना प्यार किया था। मैं यह समझता हूं कि आपने अधिक से अधिक संभव सेवा की। अब वह समय है कि जो कुछ आपने किया है उसके लिए कष्ट उठाएं। दूसरी बातें यह है कि यही वह अवसर है जब आपको सारी जनता का नेतृत्व करना है।
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